Add your promotional text...
"जल ही जीवन है, जल है तो कल है" — खंड 1
जिस क्षण किसी नवजीव की धड़कन शुरू होती है, उससे बहुत पहले उसकी काया में जल प्रवाहित होता है। विज्ञान कहता है — मानव शरीर का लगभग 70% भाग जल है।जल का महत्व, भारतीय संस्कृति जल, आध्यात्मिक जल लेकिन वेदांत कहता है — मानव चेतना का मूल स्रोत भी वही जल है, जो आदिकाल से ब्रह्मांड में स्पंदित है।
जल चेतना श्रृंखला
रोहित थपलियाल
7/12/20251 मिनट पढ़ें


“जल: चेतना का प्रथम स्पंदन”
(The First Pulse of Consciousness is Water)
जिस क्षण किसी नवजीव की धड़कन शुरू होती है, उससे बहुत पहले उसकी काया में जल प्रवाहित होता है।
विज्ञान कहता है — मानव शरीर का लगभग 70% भाग जल है।
लेकिन वेदांत कहता है — मानव चेतना का मूल स्रोत भी वही जल है, जो आदिकाल से ब्रह्मांड में स्पंदित है।
जल मात्र एक द्रव्य नहीं — यह एक चेतन तत्व है।
यह ब्रह्मांड के निर्माण से पूर्व व्याप्त "अप" (जल) है, जिसका उल्लेख ऋग्वेद की नासदीय सूक्तियों में भी आता है:
“असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर्मा अमृतं गमय।”
(जल – वह मार्ग है जो मृत्यु से अमृत की ओर ले जाए।)
🔶 जल: अस्तित्व से पहले का अस्तित्व
मानव सभ्यता का उद्गम जल स्रोतों के निकट ही हुआ।
सिंधु घाटी सभ्यता, मेसोपोटामिया, मिस्र, और चीन — इन सभी प्राचीन संस्कृतियों का उद्भव नदियों के तटों पर हुआ।
हमारे यहाँ नदियाँ केवल जल नहीं, "माँ", "देवी", "संस्कारवाहिनी" मानी जाती हैं।
कुछ ऐतिहासिक साक्ष्य:
सिंधु घाटी (2600 BCE): बारीक जल निकासी प्रणाली — जल को संजोने और स्वच्छ रखने की प्राचीन समझ।
गुजरात की मोढेरा सूर्य मंदिर बावड़ी: जल के साथ सूर्य और ध्यान का संगम।
राजस्थान की चंद बावड़ी (Abhaneri): जहाँ हर सीढ़ी से उतरते हुए साधक अंतर्मन की ओर भी उतरता है।
इन संरचनाओं से स्पष्ट होता है कि जल केवल भौतिक संसाधन नहीं, आध्यात्मिक अनुशासन था।




🧠 आज के संदर्भ में विचार करें
21वीं सदी में, जब हम चंद्रमा और मंगल पर पानी की तलाश कर रहे हैं,
तब भी धरती पर करोड़ों लोग शुद्ध जल की एक बूँद के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
कुछ रिपोर्टिंग तथ्य:
NITI Aayog 2023 रिपोर्ट के अनुसार भारत के 21 प्रमुख शहरों में भूजल पूरी तरह सूखने की कगार पर है।
UNESCO 2022 रिपोर्ट: भारत में हर साल करीब 2 लाख मौतें सिर्फ अस्वच्छ जल के कारण होती हैं।
चेन्नई (2019): एक महानगर, जहाँ 1.1 करोड़ लोग जल संकट का सामना कर रहे थे।
यह संकट केवल जल का नहीं है, यह हमारी चेतना के पतन का संकेत है।


📿 जल की उपेक्षा = आत्मा की उपेक्षा
भारतीय संस्कृति में जल को "जीवात्मा" कहा गया है —
हर पूजा में पहले अर्घ्य, हर संस्कार में पहले पवित्रीकरण।
परंतु आज, हमने जल को उपयोग की वस्तु बना दिया —
उसका पवित्रतम स्थान हमने प्लास्टिक, केमिकल, और लालच से भर दिया
📜 उपसंहार (इस खंड का निष्कर्ष):
जल जीवन का आरंभ भी है और जीवन का अंत भी।
जब कोई मरता है, तो उसके मुख में जल दिया जाता है — “अंतिम सत्य के रूप में”।
तो फिर क्यों हम उसके पहले सत्य को भूलते जा रहे हैं?
❝ आइए, विचार करें…
क्या जल हमारे लिए एक आदत बन गया है?
या वह अब भी हमारी श्रद्धा में जीवित है? ❞
👉 अगले खंड में हम चर्चा करेंगे:
“जल का सांस्कृतिक, वैदिक और दर्शनिक स्वरूप — नदियाँ क्यों बनीं देवी?”



© 2025. All rights reserved.
NEED WEBHOSTING TRY
HOSTINGER.
CLICK ON ICON
"DeshDharti360 की सच्ची कहानियाँ और अपडेट सीधे पाने के लिए अपना ईमेल दें प्रकृति से जुड़ें, पहले जानें।" 🌿
गौमाता और पर्यावरण की सच्ची आवाज़
संस्कृति
पर्यावरण
देशभक्ति
यदि आपको यह लेख पसंद आया तो
DESHDHARTI360.COM पर टिप्पणियों, सुझावों, नैतिक वास्तविक कहानियों के प्रकाशन के लिए हमारे फेसबुक पेज चित्रावली पर जाएं - देशधरती360 की कला
https://www.facebook.com/DeshDhart360/
या हमारे फेसबुक ग्रुप में जाये
https://www.facebook.com/groups/4280162685549528/
आपके सहयोग से हम अपने उदेश्य व कार्यों को विस्तार दे पाएंगे