खंड 1: भारत के पास क्या है — एक शक्ति सम्पन्न राष्ट्र की वास्तविकता)

जब कोई विदेशी यात्री भारत आता था, वह इसे “सोने की चिड़िया” कहता था — न केवल इसके धन-संपदा के कारण, बल्कि इसकी आध्यात्मिक गरिमा, सांस्कृतिक समृद्धि और समाजिक ताने-बाने के कारण भी। पर आज जब हम अपने ही देश को देखते हैं, तो सवाल उठता है — "क्या यही वो भारत है, जिसकी कल्पना हमारे ऋषियों, शहीदों और स्वतंत्रता सेनानियों ने की थी?"

विश्लेषण / विचारधारा

रोहित थपलियाल

7/20/20251 मिनट पढ़ें

प्रस्तावना:

जब कोई विदेशी यात्री भारत आता था, वह इसे “सोने की चिड़िया” कहता था — न केवल इसके धन-संपदा के कारण, बल्कि इसकी आध्यात्मिक गरिमा, सांस्कृतिक समृद्धि और समाजिक ताने-बाने के कारण भी। पर आज जब हम अपने ही देश को देखते हैं, तो सवाल उठता है — "क्या यही वो भारत है, जिसकी कल्पना हमारे ऋषियों, शहीदों और स्वतंत्रता सेनानियों ने की थी?"

इस प्रश्न का उत्तर खोजने के लिए पहले हमें यह समझना होगा कि भारत के पास क्या है।

1. जनशक्ति — विश्व की सबसे युवा और ऊर्जावान आबादी

भारत की 65% आबादी 35 वर्ष से कम उम्र की है। यह मात्र एक संख्या नहीं, बल्कि विश्व के इतिहास को बदल देने वाली ऊर्जा है।
जापान में जहाँ जनसंख्या वृद्ध हो रही है, वहीं भारत में यह जनसंख्या सही दिशा पाए, तो यह न केवल आत्मनिर्भर भारत बना सकती है, बल्कि विश्व का नेतृत्व भी कर सकती है।

पर सवाल यह है — क्या हमारे युवा सही दिशा में आगे बढ़ रहे हैं, या वे बेरोजगारी, निराशा और राजनीतिक छलावे के शिकार हैं?


2. प्राकृतिक संसाधनों की भरमार — जल, खनिज, वन

भारत में 20% भू-भाग जंगलों से आच्छादित है।

कोयला, बॉक्साइट, लोहा, सोना, हीरा जैसे खनिज पर्याप्त मात्रा में हैं।

गंगा से लेकर गोदावरी तक — हमारे पास नदियों का विशाल जाल है।

तीन ओर समुद्री सीमाएँ — व्यापार, मत्स्यपालन, और ऊर्जा का भंडार।

फिर भी जल संकट, वन कटाई और खनिज लूट क्यों? इसका उत्तर व्यवस्थागत लालच और लोकहित की उपेक्षा में छिपा है।


3. कला, परंपरा और संस्कृति — हमारी अमूल्य धरोहर

हमारे गाँवों में हर बच्चा एक कलाकार है, हर दीवार एक चित्रावली है, और हर बुज़ुर्ग एक पुस्तक। भारत का संगीत, शिल्प, हस्तकला और योग — पूरे विश्व को जीवन जीने की राह दिखा सकता है।

लेकिन अफ़सोस, यह परंपराएं "ब्रांड" नहीं बन पाईं क्योंकि हमारी सरकारों ने पश्चिम की नक़ल को विकास मान लिया।

4. ज्ञान और विज्ञान — भारत की मौलिक पहचान

शून्य की खोज, आयुर्वेद, ज्योतिष, वास्तु — सब कुछ हमारी ही देन है।

चंद्रयान से लेकर डिजिटल इंडिया तक — आज भी भारत टेक्नोलॉजी की रफ्तार से आगे बढ़ सकता है।

लेकिन क्या इस ज्ञान का लाभ अंतिम गाँव तक पहुँच रहा है? या यह भी 'कॉरपोरेट ज्ञान' बनकर रह गया है?


5. कृषि और ग्रामीण भारत — आत्मनिर्भरता की रीढ़

कृषि भारत की आत्मा है।
गाँव आज भी 60% भारत को आश्रय देते हैं।
हमारे किसान खेतों से सिर्फ़ अन्न नहीं, संस्कार भी उपजाते हैं।

लेकिन इन्हीं किसानों की आत्महत्याएँ, उपेक्षा और न्यूनतम समर्थन मूल्य की राजनीति — आज भारत के आत्मसम्मान को ठेस पहुँचा रही है।

निष्कर्ष:

भारत में जो है, वह विश्व में कहीं नहीं है।
पर जो
नेतृत्व होना चाहिए था, वह आज केवल “नेतागिरी” बनकर रह गया है — जो देश को लूटने, बाँटने और मोहरा बनाने में व्यस्त है।

यह पहला खंड सिर्फ़ यह बताने के लिए था कि हमारे पास क्या है।
अगले खंड में हम यह जानेंगे कि "फिर भी हम पिछड़ क्यों गए?" — यानी भारत की नियति को भ्रष्ट नेतृत्व ने कैसे मोड़ दिया।