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भाग 2: मानसिक स्वास्थ्य — परिभाषा नहीं, पहचान बनाइए
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WELLNESS / मानसिक स्वास्थ्य
7/28/20251 मिनट पढ़ें


"मन" क्या है?
हमने सुना है: "मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।"
लेकिन यह मन होता क्या है?
यह कोई मांसपेशी नहीं, जिसे डॉक्टर स्कैन कर लें।
यह कोई नस नहीं, जिसे छूकर कहा जा सके: "हां, यहीं दुख रहा है।"
यह तो वह पुल है…
जो आपको आपसे जोड़ता है।
जो हर अनुभव, हर स्पर्श, हर रिश्ते का अर्थ तय करता है।
तो जब मन ही हमारा दृष्टिकोण तय करता है,
तो उसका स्वस्थ रहना सबसे बड़ा सौंदर्य है।
WHO क्या कहता है?
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) मानसिक स्वास्थ्य को इस तरह परिभाषित करता है:
"A state of well-being in which the individual realizes his or her own abilities, can cope with the normal stresses of life, can work productively and fruitfully, and is able to contribute to the community."
अनुवाद करें तो ये महज़ एक औपचारिक वाक्य लगता है,
लेकिन गहराई से पढ़िए — यह मनुष्य की पूरी चेतना की तस्वीर है।
"अपनी क्षमताओं को जानना" — यानी खुद को समझना, स्वीकार करना।
"तनाव का सामना करना" — यानी लचीलापन, संतुलन।
"उत्पादकता और समुदाय में योगदान" — यानी उद्देश्य और संबंध।
यह कोई तकनीकी परिभाषा नहीं,
बल्कि एक जीवंत जीवन-दर्शन है।
भारत का दृष्टिकोण — जहाँ मन है, वहाँ ब्रह्म है
भारत में मानसिक स्वास्थ्य का ज़िक्र हज़ारों साल पुरानी उपनिषदों और योगशास्त्र में मिलता है।
पतंजलि योगसूत्र में कहा गया:
"चित्त वृत्ति निरोधः" — मन की हलचलों को थाम लेना ही योग है।
भगवद गीता में श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं:
“उद्धरेदात्मनात्मानं…” — "मनुष्य स्वयं अपना उद्धार कर सकता है, स्वयं अपना शत्रु भी बन सकता है।"
यह बताता है कि मन न कोई समस्या है,
न हल —
यह वह शक्ति है, जो चाहे तो मोक्ष दे,
और चाहे तो बंधन।
आधुनिक और प्राचीन का संगम
जहाँ पश्चिमी दृष्टिकोण “तनाव प्रबंधन” की बात करता है,
भारत की परंपरा मन के पार जाने की बात करती है।
पश्चिम कहता है — cope with stress
भारत कहता है — transcend stress
पश्चिम कहता है — function well in society
भारत कहता है — know the Self and be free
इसलिए जब हम “मानसिक स्वास्थ्य” को समझते हैं,
तो हमें इन दोनों दृष्टिकोणों को संतुलित करना चाहिए —
वैज्ञानिकता औरआत्मिकता के बीच एक पुल बनाना चाहिए।
मानसिक स्वास्थ्य = केवल बीमारी नहीं, बल्कि सामर्थ्य है
कई लोग मानसिक स्वास्थ्य को डिप्रेशन, पैनिक अटैक, OCD जैसे विकारों से जोड़ते हैं।
हां, ये भी इसका हिस्सा हैं — लेकिन यही सब कुछ नहीं है।
मानसिक स्वास्थ्य यह भी है कि:
आप सुबह उठकर खुद को जीवित और उद्देश्यपूर्ण महसूस करते हैं।
आप असफलताओं को सीख की तरह लेते हैं, चोट की तरह नही
आप अकेले हों तब भी शांत हों — और साथ हों तब भी आत्मिक हों।
मानसिक स्वास्थ्य कोई “डायग्नोसिस” नहीं — यह जीवन जीने की “कला” है।
मानसिक स्वास्थ्य और "स्व" की यात्रा
जब आप अंदर की दुनिया को सुनना शुरू करते हैं,
तो आप देखेंगे कि बहुत से भय, ग़लतफहमियाँ, बचपन के घाव,
आपके निर्णयों को चुपचाप नियंत्रित कर रहे होते हैं।
एक बार जब आप ये सब पहचान लेते हैं,
तो आप अपने ही जीवन के निर्देशक बन जाते हैं।
क्या मानसिक स्वास्थ्य सिर्फ डॉक्टर का काम है?
नहीं।
मानसिक स्वास्थ्य:
काउंसलर से बात करने में है,
लेकिन उतना ही किसी मित्र को गले लगाने में भी है।
मेडिटेशन में है,
लेकिन उतना ही किसी बच्चे की हंसी में भी है।
किताबों में है,
लेकिन चुपचाप किसी पेड़ के नीचे बैठने में भी है।
अंतिम विचार — मन से मिलिए
आप दिन भर दुनिया से मिलते हैं — बॉस, क्लाइंट, परिवार, स्क्रीन…
कभी खुद से भी मिलिए।
उस गहरे, शांत, सहज "मैं" से —
जो हर शोर के पीछे चुप बैठा है,
और बस इतना चाहता है कि आप उसे सुनें।
"अपने मन से संवाद करना ही असली ध्यान है।"
"अपने मन को समझना ही असली चिकित्सा है।"
अब आगे क्या?
अब जब हमने जाना कि मानसिक स्वास्थ्य सिर्फ परिभाषा नहीं, एक जीवन-दृष्टि है —
तो अगला भाग होगा:
भाग 3: मानसिक स्वास्थ्य के चार स्तंभ — संतुलन के चार दीप
जिसमें हम बात करेंगे:
भावनात्मक बुद्धिमत्ता
आत्म-सम्मान
सामाजिक संबल


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