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15 अगस्त: भारत का स्वतंत्रता दिवस — इतिहास, महत्व और जिम्मेदारी | DeshDharti360
विश्लेषण / विचारधाराOPINION / ANALYSIS
रोहित थपलियाल
8/15/20251 मिनट पढ़ें
15 अगस्त — आज़ादी का पर्व, जिम्मेदारी का संकल्प
प्रस्तावना — आज़ादी की साँस, तुम्हारे और मेरे नाम
हर वर्ष जब 15 अगस्त का सूरज उगता है, तो उसकी किरणें केवल रोशनी नहीं लातीं, बल्कि उन अनगिनत बलिदानों का आशीर्वाद लेकर आती हैं, जिन्होंने भारत को स्वतंत्र बनाने के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए।
यह दिन हमें याद दिलाता है कि स्वतंत्रता सिर्फ एक तारीख नहीं, बल्कि एक विरासत, एक त्याग और एक जिम्मेदारी है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि — दो सौ वर्षों की बेड़ियों से मुक्ति
भारत लगभग 200 वर्षों तक ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के अधीन रहा।
15 अगस्त 1947 की मध्यरात्रि में, जब पूरी दुनिया सो रही थी, भारत ने आज़ादी की पहली सांस ली।
पंडित जवाहरलाल नेहरू ने ऐतिहासिक भाषण दिया और लाल किले पर तिरंगा फहराया।
यह स्वतंत्रता, महात्मा गांधी के अहिंसक संघर्ष, भगत सिंह और चंद्रशेखर आज़ाद जैसे क्रांतिकारियों के बलिदान, नेताजी सुभाष चंद्र बोस के अदम्य साहस, रानी लक्ष्मीबाई के पराक्रम और अनगिनत गुमनाम वीरों की कुर्बानी का परिणाम थी।
15 अगस्त का सांस्कृतिक महत्व
आज, हर साल लाल किले से प्रधानमंत्री राष्ट्र को संबोधित करते हैं,
देशभर में तिरंगा फहराया जाता है, विद्यालयों, पंचायतों और नगरों में सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं, देशभक्ति गीत गूंजते हैं।
यह दिन केवल राजनीतिक स्वतंत्रता का नहीं, बल्कि सांस्कृतिक जागरण, राष्ट्रीय एकता और आत्म-सम्मान का भी पर्व है।
भावनात्मक दृष्टि — मिट्टी, रक्त और तिरंगे की आत्मा
"ये मिट्टी सिर्फ धूल नहीं — इसमें वो रक्त मिला है जो वीरों ने बहाया।
ये तिरंगा सिर्फ कपड़ा नहीं — ये हमारी आत्मा की पहचान है।"
जब हम तिरंगे को सलामी देते हैं, तो हम केवल एक झंडे को सम्मान नहीं दे रहे होते, बल्कि हम उन माताओं की लोरियों, उन बहनों के आँसुओं और उन सैनिकों की अंतिम सांस को प्रणाम कर रहे होते हैं जिन्होंने हमें यह दिन देखने का अवसर दिया।
कविता: 🌸 आज़ादी का रंग 🌸
लहर-लहर के संग हवा में,
तिरंगा आज खिला है,
हर आँगन में, हर दिल में,
भारत फिर से जी उठा है।
यह रंग केसरिया बताता,
बलिदान की वो गाथा,
जहाँ वीरों ने हँसकर दी,
अपने प्राण की परिभाषा।
श्वेत रंग का कोमल सपना,
सत्य, शांति का प्यारा गीत,
जहाँ नफरत का नाम न हो,
हर दिल में हो प्रेम का मीत।
हरा रंग है आशा का दीपक,
धरती की हरियाली का मान,
जहाँ खेतों में सोना उगे,
और बरसे अमृत जैसा जान।
ओ मेरे देश, ओ माँ भारत,
तेरे आँचल का ऋणी मैं,
तेरी मिट्टी की खुशबू में,
जीना-मरना ही ध्येय है।
आज कसम हम फिर खाएँ,
तेरा मान कभी न घटाएँ,
तेरे प्रेम में जीवन अर्पण,
तेरी सेवा में ही मर जाएँ।
स्वतंत्रता — एक जिम्मेदारी भी
15 अगस्त हमें यह भी याद दिलाता है कि आज़ादी केवल पाने के लिए नहीं होती, बल्कि संभालने के लिए होती है।
हमारे लिए यह जरूरी है कि हम:
जाति, धर्म, भाषा के भेदभाव को भूलकर भारतीय के रूप में जिएँ।
भ्रष्टाचार, अन्याय और असमानता के खिलाफ खड़े हों।
प्रकृति, संस्कृति और संविधान — तीनों की रक्षा करें।
निष्कर्ष — मातृभूमि को पूजा योग्य बनाना
आज हमें संकल्प लेना चाहिए कि भारत को हम सिर्फ रहने की जगह नहीं, बल्कि पूजा करने योग्य मातृभूमि बनाएँगे।
हम अपने कर्म, ईमानदारी और एकता से इसे आने वाली पीढ़ियों के लिए स्वर्णिम विरासत देंगे।
"जिसने इस धरती को प्रेम किया, वही सच्चा देशभक्त है।"
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